Saturday, 30 January 2016

डी.ओ.स. डोस (डिस्क ऑप्रेटिंग सिस्टम)
वैज्ञानिकों के अलावा साधारण उपभोक्ताओं के लिये एक ऑपरेटिंग सिस्टम की शुरुआत की गयीं जिसका नाम डी.ओ.स. –डोस (डिस्क ऑप्रेटिंग सिस्टम) रखा गया. यह ऑप्रेटिंग सिस्टम कंसोल मोड आधारित था, अर्थात इसमें माउस का उपयोग नहीं होता था न ही इसमें ग्राफ़िक से सम्बंधित कोई काम हो सकता था. इसमें फाइल और डायरेक्टरी बनाया जा सकता था जिसमे हम टेक्स्ट को सुरक्षित कर के रख सकते थे और पुनः उपयोग भी कर सकते थे.

डी.ओ.स. पूर्णतः आदेश (COMMAND) पर आधारित होता था. आदेश के दुवारा ही कंप्यूटर को निर्देशित कर सकते थे. जिन्हें जितना आदेश याद होता था उसे उतना ही जानकार माना जाता था. आदेश (COMMAND)- यह कंप्यूटर को निर्देशित करने का तरीका होता हैं. पहले ही कंप्यूटर को यह बतला दिया जाता है की निम्न शब्द का प्रयोग करने से निम्न प्रकार का ही काम करना हैं. और जब कोई उपभोक्ता बस उस आदेश को लिखता हैं तो कंप्यूटर स्वतः उस काम को निष्पादित करता हैं.

डी.ओ.स. को ऑप्रेटिंग सिस्टम का माँ भी कहा जाता हैं, क्योंकि हम आज जिस भी ऑप्रेटिंग सिस्टम का उपयोग करते हैं उसका मुख्य आधार डी.ओ.स. ही होता हैं. बाद के समय में मायक्रोसॉफ्ट कंपनी ने इसे खरीद लिया, उसके बाद इसे ऍम.एस.डी.ओ.स. के नाम से जाना जाने लगा. हम यहाँ डी.ओ.स. के कमांडो का ज्यादा चर्चा नहीं करेंगे क्योंकि आज हम प्रत्यक्ष रूप से इसका उपयोग नहीं करते हैं.

सबसे पहले हम चर्चा करेगे की प्रोम्प्ट क्या होता हैं?

डी.ओ.स. में साधारणतया हमें “C:\>_” प्रकार की आकृति बनी हुई दिखाई पड़ती हैं. जब हम डी.ओ.स. खोलते हैं तो स्क्रीन के बायीं ओर यह दिखलाई पड़ता हैं.
जहाँ-
C: यह बतलाता है कि हम हार्डडिस्क के किस भाग में हैं. सामान्यतः हार्डडिस्क C: D: E: में और फ्लॉपी A: के तौर पर दिखाई पड़ता हैं. यह क्रम कोई जरुरी नहीं होता.
\ यह बतलाता हैं कि हम किस डायरेक्टरी में हैं. डायरेक्टरी उस स्थान को कहा जाता हैं जहाँ हम फाइल को सुरक्षित रखते हैं, और फाइल हम उसे कहते हैं जिसके अंतर्गत सूचनाओं को रखा जाता हैं. दूसरे शब्दों में अगर कहें तो हम जो साधारण कॉपी पर लिखते हैं उससे फाइल कहा जाता हैं और उस कॉपी को सहेज कर रखने के लिये जो आलमारी या रैक का उपयोग किया जाता हैं उससे डायरेक्टरी कहते हैं.
> यह बतलाता हैं कि मुख्य जानकारी यहाँ समाप्त हुई.
_ यह टिमटिमाता छोटा लाइन कर्सर के नाम से जाना जाता हैं. यह जहाँ भी दिखता हैं उसका मतलब हुआ की हम उस जगह पर कुछ लिख सकते हैं.

कम्प्यूटर की विशेषताएँ

प्रत्येक कम्प्यूटर की कुछ सामान्य विशेषताएँ होती है । कम्प्यूटर केवल जोड करने वाली मशीन नही है यह कई जटिल कार्य करने मे सक्षम है।कम्प्यूटर की निम्न निशेषताएँ है। 
वर्ड-लेन्थ
डिजिटल कम्प्यूटर केवल बायनरी डिजिट पर चलता है। यह केवल 0 एवं 1 की भाषा समझता है। आठ बिट के समूह को बाइट कहा जाता है । बिट की संख्या जिन्हे कम्प्यूटर एक समय मे क्रियान्वित करता है वर्ड लेंन्थ कहा जाता है । सामान्यतया उपयोग मे आने वाले वर्ड लेन्थ 8,16,32,64 आदि है। वर्ड लेन्थ के द्वारा कम्प्यूटर की शक्ति मापी जाती है।
तीव्रता
कम्प्यूटर बहुत तेज गति से गणनाएँ करता है माइक्रो कम्प्यूटर मिलियन गणना प्रति सेकंड क्रियांवित करता है। 

संचित युक्ति
कम्प्यूटर की अपनी मुख्य तथा सहायक मेमोरी होती है। जो कि कम्प्यूटर को आंकडो को संचित करने मे सहायता करती है । कम्प्यूटर के द्वारा सुचनाओ को कुछ ही सेकंड मे प्राप्त किया जा सकता है । इस प्रकार आकडो को संचित करना एवं बिना किसी त्रुटि के सुचनाओ को प्रदान करना कम्प्यूटर की महत्वपूर्ण विशेषता है 
शुद्धता
कम्प्यूटर बहुत ही शुद्ध मशीन है । यह जटिल से जटिल गणनाएँ बिना किसी त्रुटि के करता है ।
वैविघ्यपूर्ण
कम्प्यूटर एक वैविघ्यपूर्ण मशीन है यह सामान्य गणनाओ से लेकर जटिल से जटिल गणनाएँ करने मे सक्षम है । मिसाइल एवं उपग्रहो का संचालन इन्ही के द्वारा किया जाता है। दूसरे शब्दो मे हम कह सकते है कि कम्प्यूटर लगभग सभी कार्यो को कर सकता है एक कम्प्यूटर दूसरे कम्प्यूटर से सुचना का आदान प्रदान कर सकता है । कम्प्यूटर की आपस मे वार्तालाप करने की क्षमता ने आज ईंटरनेट को जन्म दिया है ।जो कि विश्व का सबसे बडा नेटवर्क है ।
स्वचलन
कम्प्यूटर एक समय मे एक से अधिक कार्य करने मे सक्षम है ।
परिश्रमशीलता
परिश्रमशीलता का अर्थ है कि बिना किसी रूकावट के कार्य करना । मानव जीवन थकान ,कमजोरी,सकेन्द्रण का आभाव आदि से पिडित रङता है।मनुष्य मे भावनाए ङोती है वे कभी खुश कभी दुखी होते है । इसलिए वे एक जैसा काम नही कर पाते है । परंतु कम्प्यूटर के साथ ऐसा नही है वह हर कार्य हर बार बहुत ही शुद्धता एवं यथार्थता से करता है .

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