Saturday, 30 January 2016

प्रोग्रामिंग क्या है ?
सामान्य जीवन में हम किसी कार्य विशेष को करने का निश्चय करते हैं तो उस कार्य को करने से पूर्व उसकी रूपरेखा सुनिश्चित की जाती है । कार्य से सम्बन्धित समस्त आवश्यक शर्तों का अनुपालन उचित प्रकार हो एवं कार्य में आने वाली बाधाओं पर विचार कर उनको दूर करने की प्रक्रिया भी रूप रेखा तैयार करते समय महत्वपूर्ण विचारणीय विषय होते हैं । कार्य के प्रारम्भ होने से कार्य के सम्पन्न होने तक के एक-एक चरण (step) पर पुनर्विचार करके रूपरेखा को अन्तिम रूप देकर उस कार्य विशेष को सम्पन्न किया जाता है । इसी प्रकार कम्प्यूटर द्वारा, उसकी क्षमता के अनुसार, वांछित कार्य कराये जा सकते हैं । इसके लिए आवश्यकता है कम्प्यूटर को एक निश्चित तकनीक व क्रम में निर्देश दिए जाने की, ताकि कम्प्यूटर द्वारा इन निर्देशों का अनुपालन कराकर वांछित कार्य को सम्पन्न किया जा सके । सामान्य बोल-चाल की भाषा में इसे प्रोग्रामिंग कहा जाता है ।
कम्प्यूटर को निर्देश किस प्रकार दें ?
कम्प्यूटर को निर्देश योजनाबद्ध रूप में, अत्यन्त स्पष्ट भाषा में एवं विस्तार से देना अत्यन्त आवश्यक होता है । कम्प्यूटर को कार्य विशेष करने के लिए एक प्रोग्राम बनाकर देना होता है । दिया गया प्रोग्राम जितना स्पष्ट, विस्तृत और सटीक होगा, कम्प्यूटर उतने ही सुचारू रूप से कार्य करेगा, उतनी ही कम गलतियां करेगा और उतने ही सही उत्तर देगा । यदि प्रोग्राम अस्पष्ट होगा और उसमें समुचित विवरण एवं स्पष्ट निर्देश नहीं होंगे तो यह सम्भव है कि कम्प्यूटर बिना परिणाम निकाले ही गणना करता रहे अथवा उससे प्राप्त परिणाम अस्पष्ट और निरर्थक हों ।कम्प्यूटर के लिए कोई भी प्रोग्राम बनाते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है –
1. समस्या का सावधानीपूर्वक अध्ययन करके निर्देशों को निश्चित क्रम में क्रमबद्ध करना ।
2. निर्देश इस प्रकार लिखना कि उनका अक्षरशः पालन करने पर समस्या का हल निकल सके ।
3. प्रत्येक निर्देश एक निश्चित कार्य करने के लिए हो ।
प्रोग्रामिंग के विभिन्न चरण 
किसी भी प्रोग्राम की प्रोग्रामिंग करने के लिए सर्वप्रथम प्रोग्राम के समस्त निर्देष्टीकरण को भली-भांति समझ लिया जाता है । प्रोग्राम में प्रयोग की गई सभी शर्तों का अनुपालन सही प्रकार से हो रहा है अथवा नहीं, यह भी जांच लिया जाता है । अब प्रोग्राम के सभी निर्दिष्टीकरण को जांचने-समझने के उपरान्त प्रोग्राम के शुरू से वांछित परिणाम प्राप्त होने तक के सभी निर्देशों को विधिवत क्रमबद्ध कर लिया जाता है अर्थात प्रोग्रामों की डिजाइनिंग कर ली जाती है । प्रोग्राम की डिजाइन को भली-भांति जांचकर, प्रोग्राम की कोडिंग की जाती है एवं प्रोग्राम को कम्पाइल किया जाता है । प्रोग्राम में टेस्ट डेटा इनपुट करके प्रोग्राम की जांच की जाती है कि वास्तव में सही परिणाम प्राप्त हो रहा है अथवा नहीं । यदि परिणाम सही नहीं प्राप्त होते हैं तो इसका अर्थ है कि प्रोग्राम के किसी निर्देश का क्रम गलत है अथवा निर्देश किसी स्थान पर गलत दिया गया है । यदि परिणाम सही प्राप्त होता है तो प्रोग्राम में दिए गए निर्देशों के क्रम को एकबद्ध कर लिया जाता है एवं निर्देशों के इस क्रम को कम्प्यूटर में स्थापित कर दिया जाता है । इस प्रकार प्रोग्रामिंग की सम्पूर्ण प्रक्रिया सम्पन्न होती है ।

प्रोग्रामिंग के विभिन्न चरण
1).एल्गोरिथ्म
पारिभाषिक शब्दों में किसी गणितीय समस्या अथवा डाटा को कदम-ब-कदम इस प्रकार विश्लेषित करना जिससे कि वह कम्प्यूटर के लिए ग्राह्म बन सके और कम्प्यूटर उपलब्ध डाटा को प्रयोग में लेकर गणितीय समस्या का उचित हल प्रस्तुत कर सके, एल्गोरिथ्म कहलाता है । जब कम्प्यूटर पर करने के लिए कोई कार्य दिया जाता है तो प्रोग्रामर (आप) को उसकी संपूर्ण रूपरेखा तैयार करनी होती है तथा कम्प्यूटर से बिना गलती कार्य करवाने के लिए किस क्रम से निर्देश दिए जाएंगे, यह तय करना होता है । अर्थात किसी कार्य को पूर्ण करने के लिए विभिन्न चरणों से गुजरना पड़ता है । जब समस्या के समाधान हेतु विभिन्न चरणों को क्रम से क्रमबद्ध करके िलखा जाये तो यह एल्गोरिथ्म कहलाता है ।
ध्यान रखें
· एल्गोरिथ्म में दिए गए समस्त निर्देश सही एवं स्पष्ट अर्थ के होने चाहिए ।
· प्रत्येक निर्देश ऐसा होना चाहिए कि जिसका अनुपालन एक निश्चित समय में किया जा सके ।
· कोई एक अथवा कई निर्देश ऐसे न हों जो अन्त तक दोहराए जाते रहें । यह सुनिश्चित करें कि एल्गोरिथ्म का अन्ततः समापन हो ।
· सभी निर्देशों के अनुपालन के पश्चात, एल्गोरिथ्म के समापन पर वांछित परिणाम अवश्य प्राप्त होने चाहिए ।
· िकसी भी निर्देश का क्रम बदलने अथवी किसी निर्देश के छूटने पर एल्गोरिथ्म के समापन पर वांछित नहीं प्राप्त होंगे ।
2). प्रवाह तालिका 
प्रवाह तालिका वस्तुतः एल्गोरिथ्म का चित्रात्मक प्रदर्शन है, जिसमें विभिन्न रेखाओं एवं आकृतियों का प्रयोग किया जाता है जो कि विभिन्न प्रकार के निर्देशों के लिए प्रयोग की जाती है । सामान्यतः सर्वप्रथम एक एल्गोरिथ्म को प्रवाह तालिका के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और फिर प्रवाह तालिका के आधार पर उचित कम्प्यूटर भाषा में प्रोग्राम को तैयार किया जाता है । प्रोग्राम में तार्किक गल्ती एवं शर्तों के पूरा न होने की स्थिति एल्गोरिथ्म एवं प्रवाह तालिका अधिक स्पष्ट हो जाती है ।
प्रवाह तालिका में प्रयुक्त चिन्ह एवं आकृतियां 
1. टर्मिनल – टर्मिनल का प्रयोग प्रोग्राम के प्रारम्भ , समापन और विराम के लिए किया जाता है । यह प्रोग्राम का प्रारम्भ होना और प्रोग्राम का समापन होना प्रदर्शित करता है ।
 
2. इनपुट/आउटपुट – प्रोग्राम में कोई भी इनपुट देने अथवा आउटपुट प्राप्त करने के लिए इनपुट/आउटपुट चिन्ह का प्रयोग किया जाता है । 
3. प्रोसेसिंग – फ्लोचार्ट में प्रोसेसिंग चिन्ह का उपयोग अंकगणितीय प्रक्रिया एवं डाटा विस्थापन सम्बन्धी निर्देशों के लिए किया जाता है । सभी अंकगणितीय प्रक्रिया जैसे जोड़ना, घटाना, गुणा करना और भाग करना प्रवाह तालिका में प्रोसेसिंग चिन्ह द्वारा प्रदर्शित किया जाता है । 
4. प्रवाह रेखाएं – तीर की आकृति सिरे वाली यह रेखाएं प्रोग्राम के प्रवाह को प्रदर्शित करने के लिए की जाती है । प्रोग्राम के प्रवाह को प्रदर्शित करने के निर्देशों के क्रम है जिनके अनुसार निर्देशों का क्रियान्वयन किया जाना है । 
5. निर्णायात्मक – प्रवाह तालिका में निर्णायात्मक चिन्ह का प्रयोग यह दर्शाता है कि यहां पर निर्णय लिया है जिसके दो या दो से अधिक विकल्प हो सके हैं ।Decision Box में निर्णय करने के विशिष्ट मान स्पष्ट रूप से प्रकट किए गए हों । 
6. संयोजक चिन्ह – प्रवाह तालिका में दो प्रकार के Connectors प्रयोग किए जाते हैं –
– ऑन पेज कनेक्टर
-ऑफ पेज कनेक्टर
 
7. पूर्व परिभाषित विश्लेषण चिन्ह – प्रवाह तालिका में यदि पहले की गई प्रोसेसिंग को पुनः किसी अन्य बिन्दु पर प्रयोग करना होता है तो उस बिन्दु पर प्रोसेसिंग सिम्बल के स्थान पर इस चिन्ह प्रयोग किया जाता है । 
3).मिथ्या संकेत 
किसी प्रोग्राम को विकसित करने की प्रक्रिया किए जाने वाले कार्य को समझने एवं कार्य के सम्पन्न होने हेतु तर्क निर्धारण से प्रारम्भ होती है और यह कार्य प्रवाह तालिका अथवा मिथ्या संकेत की सहायता से किया जाता है । मिथ्या संकेत प्रवाह तालिका का एक विकसित विकल्प है । मिथ्या संकेत में विभिन्न आकृतियों अथवा चिन्हों की अपेक्षा प्रोग्राम की प्रक्रिया को क्रम से लिखा जाता है । चूंकि इसका प्रोग्राम को Design करने में महत्वपूर्ण स्थान है अतः इसे प्रोग्राम डिजाइन भाषा भी कहा जाता है ।
प्रवाह तालिका बनाने के नियम
प्रवाह तालिका का निर्माण एक टरमिनल सिम्बल स्टार्ट से प्रारम्भ होता है । प्रवाह तालिका में प्रवाह ऊपर से नीचे एवं बाएं से दायीं ओर होना चाहिए । दो विभिन्न क्रियाएं, किसी एक प्रश्न के दो सम्भावित उत्तरों पर निर्भर करती हैं । ऐसी परिस्थिति में प्रश्न को एक निर्णय चिन्ह में प्रदर्शित करते हैं तथा इन परिस्थितियों को निर्णय चिन्ह से निकलने वाली दो प्रवाह रेखाओं द्वारा जो कि चिन्ह से बाहर की ओर आ रही हैं, प्रदर्शित करते हैं । निर्णय चिन्ह में एक प्रवाह रेखा आनी चाहिए और सभी सम्भावित उत्तरों के लिए पृथ्क रेखा होनी चाहिएं । 
प्रत्येक चिन्ह में दिए गए निर्देश स्पष्ट एवं पूर्ण होने चाहिए ताकि उसे पढ़कर समझने में कठिनाई न हो । प्रवाह तालिका में प्रयुक्त नाम एवं परिवर्तनांक एक रूप होने चाहिएं ।यदि प्रवाह तालिका बड़ी हो गई है और उसे अगले पृष्ठ पर भी बनाया जाना है तो प्रवाह तालिका को इन्पुट अथवा आउटपुट सिम्बल पर ही तोड़ना चाहिए तथा उपयुक्त कनेक्टर का प्रयोग करना चाहिए । प्रवाह तालिका जहां तक सम्भव हो अत्यन्त साधारण होनी चाहिए । प्रवाह रेखाएं एक-दूसरे को काटती हुई नहीं होनी चाहिएं । यदि ऐसी परिस्थिति आती है तो उपयुक्त कनेक्टर का प्रयोग करना चाहिए । प्रोसेस सिम्बल में केवल एक ही प्रवाह रेखा आनी चाहिए और एक ही प्रवाह रेखा निकलनी चाहिए । नीचे से ऊपर की ओर जाने वाली प्रवाह रेखा या तो किसी विश्लेषण की पुनरावृत्ति अथवा लूप को प्रदर्शित करनी चाहिए ।

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